हर इंसान के जीवन में
Social Media Breaks & Self Discovery
जंगल-जंगल ढूंढ रहा मृग अपनी कस्तूरी,
कितना मुश्किल है तय करना, खुद से खुद की दूरी..
भीतर शून्य, बाहर शून्य, शूंन्य चारों ओर है,
मैं नहीं मुझ में, फिर भी मै मै का शोर है.. 😌
कितना मुश्किल है तय करना, खुद से खुद की दूरी..
भीतर शून्य, बाहर शून्य, शूंन्य चारों ओर है,
मैं नहीं मुझ में, फिर भी मै मै का शोर है.. 😌
हर इंसान के जीवन मे साल भर में 2-4 बार ऐसा भी समय आता है जब उसका
व्हाट्सऐप, फेसबुक और इंस्टाग्राम की दुनियादारी से मन उचट जाता है और वैराग्य सा कुछ महसूस होने लगता 😣
कुछ लोग अपनी \आईडी लॉग आउट/डीएक्टिवेट या बाकायदा पोस्ट डाल कर इसकी घोषणा भी कर देते.. ये अलग बात है कि वो अपने दूसरे छुपे नंबर/एकाउंट से ताक-झांक करते रहते..😜
जब थोड़े समय बाद उन्हें एहसास हो जाता कि उनके बिना दुनिया रुकने वाली नहीं तो फिर गुपचुप तरीके से सोशल मीडिया की मुख्य धारा में शामिल हो जाते ये मानकर कि अब यह जीवन की अभिन्न आदत बन चुकी है और इसके बगैर शायद जीवन की कल्पना संभव नहीं..🤠
कुछ लोग अपनी \आईडी लॉग आउट/डीएक्टिवेट या बाकायदा पोस्ट डाल कर इसकी घोषणा भी कर देते.. ये अलग बात है कि वो अपने दूसरे छुपे नंबर/एकाउंट से ताक-झांक करते रहते..😜
जब थोड़े समय बाद उन्हें एहसास हो जाता कि उनके बिना दुनिया रुकने वाली नहीं तो फिर गुपचुप तरीके से सोशल मीडिया की मुख्य धारा में शामिल हो जाते ये मानकर कि अब यह जीवन की अभिन्न आदत बन चुकी है और इसके बगैर शायद जीवन की कल्पना संभव नहीं..🤠
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